अभी एक गुड़िया की कॉल आई। बातों-बातों में वह कहने लगी कि अगर हम कहीं यात्रा कर रहे हों, और रेलगाड़ी में एक साधु, एक पुलिसकर्मी, और एक चोर हो, तो हम चोर के साथ बैठना पसन्द करते हैं। हमारे मन में ऐसा भय बैठ चुका है साधुओं के प्रति, इतनी सारी ख़बरें पढ़-सुन कर।
मैं उसकी बात सुनकर हँस पड़ा। उसकी बात बहुत गम्भीर थी, पर मुझे तसल्ली भी हुई कि यह गुड़िया मुझ से इतनी सहज तो है कि ऐसी बात बड़े आराम से मुझसे कह सके। बिल्कुल वैसे ही, जैसे बेटियाँ अपने पिता से कोई भी बात बिना भय के कह सकें। साधुओं को भी ‘बाबा’ इसी लिये कहा जाता है। फ़ारसी भाषा में ‘बाबा’ का अर्थ ही ‘पिता’ होता है।
चोर वाली बात से मुझे एक बहुत पुरानी बात याद आ गई। मेरा एक क़रीबी रिश्तेदार चंडीगढ़ में एक कोर्ट केस में फंस गया, जहाँ उसे ज़मानत की ज़रूरत थी। मैंने उसकी ज़मानत दे दी। कुछ समय बाद वह बेल जम्प (bail jump) कर गया, तो कोर्ट की तरफ़ से मुझे सम्मन आने लग गये। आख़िर मुझे वकील हायर (hire) कर के कोर्ट में पेश होना पड़ा।
एक पेशी के दिन बरसात हो रही थी। मैं छाता लेकर कोर्ट में गया और अदालत के बाहर अपने केस की आवाज़ लगने का इन्तज़ार करने लगा। मेरे साथ एक व्यक्ति बैठा था। मेरी उससे बातचीत शुरू हो गई। उस ने बताया कि वह प्रोफैशनल चोर है और एक क्रिमिनल केस में पेशी भुगतने आया था।
जब मेरे वाले केस की आवाज़ लगी, तो मैं अपना छाता उसी चोर को पकड़ा कर अदालत के अन्दर चला गया। पेशी के दौरान मेरे ज़िहन में यही ख़्याल आता रहा कि मैं अपना छाता एक चोर को पकड़ा कर आया हूँ और अब मुझे मेरा छाता वापस नहीं मिलेगा।
पेशी के बाद मैं अदालत से बाहर निकला, तो वह मेरे छाते को पकड़ कर वहीं बैठा हुआ था। उसने मुझे मेरा छाता वापस दिया और फिर मुझे मेरे केस की अपडेट पूछने लगा।
फिर मैंने उसे कहा, “आप को भी आप के केस में बहुत परेशानियों को झेलना पड़ रहा है।”
उसने उत्तर दिया, “जदों कुक्कड़ मैं खाधे हन, तां बाँगां वी हुण मैनूं ही देणिआं पैणिआं हन।” (जब मुर्ग़े मैंने खाये हैं, तो बाँग भी अब मुझे ही देनी पड़ेगी)।
~ (स्वामी) अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’