#ख़ून_से_लेंगे_पाकिस्तान ।
#पाकिस्तान_की_स्थापना ।
#हिन्दू_सिख_क़त्लेआम ।
इस विडियो के ख़ास नुक्ते इस प्रकार हैं: –
* पसाला गांव में सिखों और मुसलमानों की एक मीटिंग हुई। इसमें यह बात कही गई कि इलाके में अमन कायम रखा जाये, आपसी भाईचारा कायम रखा जाये। सभी सिख इस मीटिंग में हुई बातों से सहमत होकर अपने-अपने घरों की तरफ़ चले गये।
* लेकिन उसी वक़्त एक दूसरी मीटिंग बागण गांव में हो रही थी, जिसमें हमलावरों ने मीटिंग में शामिल लोगों को भड़काया कि इलाके के सभी सिखों को कत्ल कर दिया जाना चाहिए। बहुत लोगों ने वहां पर यह कसमें उठाई कि किसी भी सिख को ज़िन्दा नहीं छोड़ा जायेगा।
* भाटा गांव पर हज़ारों की तादाद में दंगाइयों ने हमला कर दिया। उन्होंने गांव को चारों तरफ़ से घेर कर सिखों के घरों में आग लगा दी। एक सिख प्रीतम सिंघ को हमलावरों ने उनके सीने में कई गोलियां मार कर उनको वहीं शहीद कर दिया। गोलियों की आवाज़ सुनकर एक बहुत बुजुर्ग सिख बाहर निकले, तो हमलावरों ने उन पर भी गोलियां चलाईं। उनकी भी वहीं शहादत हो गई। धर्म सिंघ, ग़रीब सिंघ और आसा सिंघ भी मुक़ाबला करते हुए गोलियों का निशाना बना दिए गये। एक सिख औरत भी गोलियों से ही शहीद हुई।
* अलग-अलग घरों में बंद 100 से भी ज़्यादा सिख चारों तरफ़ से आग में घिरे हुए थे। उनमें से कोई भी अगर बाहर निकलता था, तो गोलियों का निशाना बना दिया जाता था। भाटा गांव के इस क़त्ल-ए-आम में कुल 124 सिख शहीद हुये।
* भाटा में 124, सेहर गांव में 12, बडगर में 5, काला पानी गांव में 1, और जासा में 7 लोगों को क़त्ल किया गया। इस तरह इन गांवों में कुल 149 हिन्दुओं-सिखों के क़त्ल हुये।
* दिसम्बर 1946 के आख़िर और जनवरी 1947 की शुरुआत में हवेलियाँ और आस-पास के इलाकों में ऐसे हालात हो चुके थे कि हिन्दुओं और सिखों का वहाँ रुके रहना लगभग न-मुमकिन हो गया। लगभग सभी सिख और हिन्दू अपने घरों को छोड़कर या तो refugee camps में जा चुके थे, या वो हज़ारा ही छोड़कर पंजाब चले गये थे।
* कुछ महीनों के बाद कुछ हिन्दू और सिख हालात बदलने पर फिर वापिस अपने घरों को लौटे। उनको उम्मीद थी कि हालात पूरी तरह से सुधर जायेंगे। इन बदकिस्मत हिन्दुओं और सिखों के क़त्ल-ए-आम का एक और दौर अगस्त 1947 के आख़िर में फिर चला। गाँवों में रह रहे इका-दुका हिन्दुओं और सिखों को चुन-चुन कर बेरहमी से क़त्ल किया गया। उनको घरों को लूट लिया गया और जला दिया गया।
* पूरे हज़ारा में हिन्दुओं और सिखों के क़त्ल-ए-आम के सबसे खौफ़नाक वाकियात में से एक हरीपुर में 26 अगस्त, 1947 को हुआ था। हिन्दुओं और सिखों को उनके गले काटकर बहुत तड़पा-तड़पा कर क़त्ल किया गया। हिन्दू और सिख दुकानदारों के सिर काटकर उनकी दुकानों के बाहर टांग दिये गये।
* वाह के refugee camp से लगभग हर रोज़ या दो दिन छोड़कर तकरीबन 2 या 3 हज़ार हिन्दू-सिख refugees को निकाल कर ट्रेन के ज़रिये भारत भेजा जाने लगा। जो किस्मत वाले होते थे, वो ज़िन्दा ही भारत पहुँच जाते थे। बाक़ी रास्ते में ही दंगाइओं के हाथों मारे जाते।