(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)
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गुन गोबिंद गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु ॥
कहु नानक हरि भजु मना जिह बिधि जल कउ मीनु ॥१॥
(वाणी श्री गुरु तेग़ बहादुर साहिब, १४२६, श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी)।
हम कोई भी काम करें, उसके पीछे कोई न कोई मक़सद होता है। बिना मक़सद के हम कोई काम नहीं करते। अगर हम कोई मकान बनाते हैं, किसी इमारत की तामीर करते हैं, तो उसका यह मक़सद होता है कि हम उसको अपना घर बनाएँगे, उसमें रहेंगे। या, यह भी मक़सद हो सकता है कि हम उस को फ़ायदे पर आगे किसी और को बेच देंगे।
अगर हम कोई गाड़ी लेते हैं, तो उसका मक़सद है कि हम ने अगर कहीं जाना हो, तो हमें आसानी रहेगी। घर में कोई भी चीज़ हम लेकर आते हैं, उसके पीछे कोई न कोई मक़सद होता है। घर में अगर हम टेलीविज़न लेकर आते हैं, तो उसका मक़सद है कि हम टेलीविज़न पर आने वाले जो प्रोग्राम्स हैं, उनको देखेंगे। घर मे कम्प्युटर लेकर आते हैं, तो उसका मक़सद है कि हम इस कम्प्युटर को इस्तेमाल करके अपने काम कर सकेंगे। अगर हम कोई किताब अपने घर लेकर आते हैं, तो उसका मक़सद है कि हम उस किताब को पढ़ेंगे। बच्चों को हम अगर पढ़ाएँ, तो उसका मक़सद है कि ये अच्छी तालीम हासिल करके किसी अच्छे रोजगार पर लगेंगे। अगर हम कोई काम करें, और उसका वह मक़सद, जिसके लिए वो काम किया गया, वह पूरा न हो, तो वह काम करना फ़िज़ूल रहा। हमने अगर मकान बनाया, तो उसका मक़सद यह था कि हम उसको अपना घर बनाकर उसमे रहेंगे, या उसको फ़ायदे पर किसी को बेच देंगे। अगर हम ने मकान बना लिया, लेकिन उसमे रहे न, और न ही उसको कहीं फ़ायदे पर किसी और को बेचा, तो वह मकान बनाने का मक़सद पूरा न होने की वजह से वह मकान बनाना फ़िज़ूल रहा। मकान बनाया तो सही, मगर उसको इस्तेमाल न किया। मकान वीरान पड़ा-पड़ा ख़राब हो गया। मकान वीरान पड़ा पड़ा गिरने लगा। मकान बनाना फ़िज़ूल गया। हम कोई गाड़ी खरीद कर घर लाये। मक़सद था कि इसको इस्तेमाल करेंगे। और कहीं सफर पर जाना होगा, तो इसको इस्तेमाल कर के हमें सफ़र करना आसान रहेगा। लेकिन गाड़ी लाये, और घर में खड़ी कर दी। उसको कभी इस्तेमाल नहीं किया। तो गाड़ी खरीदने का जो मक़सद था, जो पूरा न होने की वजह से, गाड़ी ख़रीदना फ़िज़ूल रहा। हर काम का मक़सद है। मक़सद पूरा न हुआ, तो वह काम करना फ़िज़ूल रहा। अगर हम कोई काम करते हैं, तो यही देखने में आता है कि उसका कोई न कोई मक़सद है। तो फिर, इस दुनिया में आने के पीछे हमारा कोई मक़सद नहीं होगा क्या? जिसने हमें बनाया, क्या उसने हमारे बनाने के लिए कोई मक़सद न सोचा होगा? हम इस संसार में आये, तो यहाँ आने का हमारा कोई मक़सद नहीं है क्या?
तीन बातें हैं: एक तो, कि इस संसार में हम आये, क्या उसका कोई मक़सद है? दूसरा, कि अगर कोई मक़सद है, तो वह मक़सद क्या है? और तीसरा, कि क्या हमने वह मक़सद पा लिया?
इस दुनिया में हम आये, तो उसका क्या मक़सद है?
भई परापति मानुख देहुरीआ ॥ गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥
अवरि काज तेरै कितै न काम ॥ मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥१॥
(वाणी गुरु अर्जुन देव जी, १२, श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी)।
तुम्हें यह इंसान का शरीर मिला है, तो यह भगवान को मिलने का, गोविंद को मिलने को, उस ख़ुदा को मिलने का तुम्हें मौका मिला है। इस काम के इलावा, इस काम के उलट जाकर अगर कोई और काम तुम कर रहे हो, वह तुम्हारे काम के नहीं हैं। वह तुम्हारे लिए फ़िज़ूल हैं।
अवरि काज तेरै कितै न काम ॥ मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥
साधु की संगत में जाकर उस प्रभु का नाम भजो। उस प्रभु के नाम का सुमिरन करो। यह है मक़सद हमारा इस दुनिया में आने का। अगर यह मक़सद हमने पूरा कर लिया, तो ठीक। अगर यह मक़सद हमने पूरा न किया, तो हमारा यहाँ आना फ़िज़ूल रहा।
इसी लिये गुरु तेग़ बहादुर साहिब महाराज कहते हैं:
गुन गोबिंद गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु ॥
गुन गोबिंद: गोविंद के गुण। प्रभु के गुण। ख़ुदा की सिफ़त सलाह।
गुन गोबिंद गाइओ नही: तुमने गाये नहीं प्रभु के गुण, तुमने ख़ुदा की सिफ़्त-सलाह नही की।
इसलिये, जनमु अकारथ कीनु: यह जो तुम्हारा जन्म है, यह फ़िजूल हो गया। तुमने अपने जन्म को फ़िजूल कर दिया। अकारथ, जो किसी अर्थ में न हो। जो किसी अर्थ में न हुआ, वह अकारथ। जिस का कोई फ़ायदा न हुआ हो, वह अकारथ। जो व्यर्थ गया, वह अकारथ। जो निरर्थक हो गया, वह अकारथ। क्योंकि तुमने प्रभु के गुण नहीं गाये, ख़ुदा की सिफ़्त-सलाह नहीं की, इसलिये तुम्हारा यह जन्म, इस दुनिया में आना व्यर्थ हो गया, फ़िज़ूल हो गया।
गुन गोबिंद गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु ॥ जन्म को अकारथ कर दिया, व्यर्थ कर दिया। जैसे, मकान बनाया, लेकिन उसमें रहे नहीं, तो वह मकान बनाना अकारथ हो गया, व्यार्थ हो गया, फ़िजूल हो गया। इस संसार में आये, इस दुनिया में आये कि बंदगी करनी थी ख़ुदा की। वह नहीं की। सुमिरन करना था प्रभु का, वह नहीं किया, तो यहाँ आना निरर्थक हुआ। यहाँ आना फ़िज़ूल हुआ। यह जन्म फ़िज़ूल कर दिया।
कहु नानक हरि भजु मना जिह बिधि जल कउ मीनु ॥१॥
कहू नानक। हे नानक, कहो। गुरु नानक पहले गुरु हुये। उन्ही का नाम ‘नानक’ लेकर जो बाक़ी गुरु साहिबान हुये, उन्होने वाणी उचारी है। अपना पाक-कलाम कहा।
कहु नानक हरि भजु मना। हे मन, हरी को भजो। हरि का सुमिरन करो। ख़ुदा की सिफ़त करो।
कैसे करो? जिह बिधि जल कउ मीनु ॥ जैसे पानी को मच्छी याद करती है। जैसे पानी के बिना मछली रह नहीं सकती। पानी के बिना मच्छी का ज़िंदा रहना सोचा भी नहीं जा सकता। पानी है, तो मच्छी की ज़िन्दगी है। ऐसे ही, प्रभु का सुमिरन हो, तो इंसान की ज़िन्दगी हो। प्रभु से बिछड़ कर जीवन भी कैसा? जो सच्चा भक्त हो, वह तो सोच भी नहीं सकता प्रभु के बिना, प्रभु की याद के बिना, प्रभु की बन्दगी के बिना ज़िंदा रहना।
राम बिओगी ना जीऐ जीऐ त बउरा होइ ॥७६॥
(भक्त कबीर जी, १३६८, श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी)।
जो बिछड़ा हुआ महसूस करे अपने आप को प्रभु से, वह ज़िन्दा नहीं रह सकता। अगर ज़िन्दा रहे, तो वह बौरा हो जाएगा, पागल हो जायेगा। यह भक्त की स्थिति है। ऐसे उस प्रभु को याद करो, जैसे मच्छी पानी को याद करती है। जैसे पानी के बिना मछली नहीं रह सकती, पानी उसका जीवन बन गया। पानी उसकी ज़िन्दगी बन गयी। ऐसे प्रभु के भक्ति, ख़ुदा की बन्दगी तुम्हारा जीवन बन जाये। अगर ऐसे हो जाये कि तुम बन्दगी करने लगो, अगर ऐसा हो कि तुम बस सुमिरन ही करने लगो, फिर हम कह सकते हैं कि तुम्हारा जीवन का मक़सद पूरा हुया। तुम जिस काम के लिये आये थे यहाँ पर, वह काम तुमने पूरा कर दिया। नहीं तो, मकान बनाया, उसमे रहे नही। रहे बाहर, तो मकान बनाने का क्या फ़ायदा हुआ? गाड़ी ली, पर उस पर सफ़र नही किया, तो गाड़ी लेने का क्या फ़ायदा हुआ? मकान बनाना फ़िज़ूल गया। गाड़ी लेना फ़िज़ूल गया। ऐसे ही अगर ख़ुदा की बन्दगी नहीं की, प्रभु की भक्ति नहीं की, तो जन्म लेना व्यर्थ गया। जन्म लेना फ़िज़ूल गया। और फ़िज़ूल किसने किया? हमने खुद किया। अगर हमने सुमिरन नहीं किया, अगर हमने बन्दगी नहीं की, जनमु अकारथ कीनु॥ हमने ख़ुद ही अपना जन्म, अपनी ज़िन्दगी फ़िज़ूल गँवा दी। तो ज़रूरी होता है, मक़सद पूरा करना। यहाँ आने का मक़सद प्रभु की बन्दगी करना है। प्रभु के गुण गाने हैं। प्रभु की भक्ति करनी है। अगर वह नहीं की, तो जीवन व्यर्थ। जीवन फ़िज़ूल गया।
गुन गोबिंद गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु ॥
कहु नानक हरि भजु मना जिह बिधि जल कउ मीनु ॥१॥
(वाणी श्री गुरु तेग़ बहादुर साहिब, १४२६, श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी)।