(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)
दान देना शुभ कर्म है, परन्तु अक्सर ऐसा हो जाता है कि दान करने वाले में अहंकार का भाव पैदा हो जाता है। अहंकार का भाव पैदा हो जाना अशुभ कर्म है। शुभ कर्म होने के बावजूद दान व्यक्ति में अहंकार का अशुभ भाव पैदा कर सकता है। इस से सावधान रहने की बहुत ज़रूरत है। दान किया जाये, परन्तु अहंकार का भाव रखकर नहीं। दान किया जाये, तो मन में यह धारणा हो कि “दान करना मेरा धर्म है, मेरा कर्तव्य है। दान देकर मैं किसी पर अहसान नहीं कर रहा।”
यूद्धिष्ठिर ने द्रौपदी को कहा था, “मैं कर्मों के फल की इच्छा रखकर उनका अनुष्ठान नहीं करता, अपितु “देना कर्तव्य है”, यह समझकर दान देता हूँ”। – वनपर्व, महाभारत।