(अमृत पाल सिंघ “अमृत”)
जिस से मन्त्र्णा की जाए, वह मन्त्री कहलाता है। मन्त्र्णा का अर्थ है, सलाह-मशवरा करना। अतः जिस से सलाह ली जाए, वह मन्त्री है।
शासक अपनी सहायता के लिए कुछ मंत्रियों की नियुक्ति करता है, जो उसे विभिन्न विषयों पर सलाह देते हैं। ऐसा नही है कि कोई शासक किसी को भी अपना मन्त्री नियुक्त कर दे, तो काम चल जाएगा। मन्त्री कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो अपने विषय के तत्व को जानने वाला हो। मन्त्री कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो सदा शासक और देश के हित में लगा रहने वाला हो। उसका हर मशवरा शासक और राष्ट्र के हित में ही होना चाहिए।
किसी देश के मन्त्री कैसे होने चाहिए ?
श्री वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण में लिखा है कि महाराज दशरथ के मन्त्री विद्वान, सलज्ज, कार्यकुशल, जितेंद्रिय, महात्मा, शस्त्रविद्या के ज्ञाता, यशस्वी, तेजस्वी, औरे क्षमाशील थे। (श्लोक ६, ७, और ८, सर्ग ७, बालकाण्ड)। किसी भी शासक के मंत्रियों में यह सभी गुणों को होना अति-आवश्यक है।
किसी भी राज्य की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि इस बात की पूरी जानकारी रखी जाए कि दुश्मन देशों की हुकूमत क्या कर रही है, क्या कर चुकी है और क्या करना चाहती है। ऐसा करने के लिए एक गुप्तचर विभाग की आवश्यकता होती है, जो कार्यकुशल गुप्तचरों को देश-विदेश में नियुक्त करता है। एक सुयोग्य गुप्तचर विभाग तभी अच्छी तरह से कार्य कर सकता है, अगर उस विभाग की देखरेख करने वाला मन्त्री एक सुयोग्य व्यक्ति हो। एक सुयोग्य मन्त्री का चुनाव एक सुयोग्य प्रशासक या शासक ही कर सकता है।
एक सुयोग्य शासक एक निरपक्ष न्याय व्यवस्था का प्रबन्ध करता है। उसका प्रबन्ध ऐसा होना चाहिए कि यदि किसी मन्त्री, किसी और उच्च पदस्थ अधिकारी, यहाँ तक के स्वयं शासक का पुत्र भी अपराधी हो, तो उसको भी उचित दण्ड मिले।
किसी भी राज्य के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी प्रजा की भलाई के लिए विद्यालय और चिकित्सालय आदि का निर्माण करवाए। समाज की भलाई के लिए जो भी उचित कार्य हो, उसे करे। ऐसे कार्य तभी हो सकेंगे, जब राज्य के कोष में पर्याप्त धन हो। किसी भी शासक के लिए आवश्यक है कि वह राजकीय कोष को भरा हुया रखे। राजकीय कोष को भरा रखने के लिए उचित आर्थिक नीतियों का पालन करना पड़ता है।
किसी भी राज्य की सुरक्षा उसकी सेना पर ही निर्भर करती है। एक सुशिक्षित और पर्याप्त रूप से शस्त्रबद्ध सेना ही किसी राष्ट्र की सुरक्षा कर सकती है। एक कुशल शासक को चाहिए कि वह इस बात का ध्यान रखे कि सेना के पास पर्याप्त अस्त्र-शस्त्र हों और सेनिकों को उचित प्रशिक्षण भी प्राप्त हो। एक शक्तिशाली सेना ही अपने राष्ट्र की सुरक्षा का दायत्व संभाल सकती है। राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों की रक्षा की जानी चाहिए।
किसी राष्ट्र के पास एक शक्तिशाली सेना हो जाने से उस राष्ट्र और उस के शासक की ज़िम्मेदारी भी बढ़ जाती है। किसी शासक के पास एक शक्तिशाली सेना हो, तो हो सकता है कि वह जो चाहे, वही करने लगे। अगर ऐसा होता है, तो यह बहुत ग़लत है। एक आदर्श शासक को चाहिए कि उस के शत्रु ने भी अगर कोई अपराध नहीं किया, तो वह उसकी हिंसा न करे।
यह बहुत आवश्यक है कि मन्त्री-गण जो भी मंत्रणा करें, उसे आवश्यकतानुसार गुप्त रखा जाए। यदि गुप्त मंत्रणा का भेद खुल जाये, उस से राष्ट्र और शासक का अहित हो सकता है। इसलिए मन्त्री ऐसा हो, जो ऐसी बातों का भेद सदा ही बनाए रखे।
यदि मन्त्री ऐसे शुभ गुणों वाले होंगे, तो उनका यश देश और विदेश में फैलेगा। स्वाभाविक है कि प्रजा भी ऐसे गुणवान मंत्रियों का पूर्ण आदर करेगी।
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(राजा दशरथ के आठ मुख्य मन्त्री थे, जिनके नाम इस प्रकार हैं, धृष्टि, जयंत, विजय, सुराष्ट्र, राष्ट्रवर्धन, अकोप, धर्मपाल और सुमन्त्र। राजपुरोहित वशिष्ठ जी और वामदेव जी भी मन्त्री की तरह राजा को सलाह भी दिया करते थे। इस के सिवा भी राजा दशरथ के मन्त्री थे, जिन के नाम इस प्रकार हैं, सुयज्ञ, जाबालि, काश्यप, गौतम, मार्कन्डेय और कात्यायन। )