* नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस की मिनिस्ट्री डॉक्टर ख़ान साहब की रहनुमाई में थी। डॉक्टर ख़ान साहिब सरहदी गान्धी ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब के भाई थे। ये काँग्रेस में थे। ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार खान साहिब हमेशा ही हिन्दू-मुस्लिम unity के हक़ में रहे थे। एक लाख से भी ज़्यादा मुसलमान, ख़ास तौर पर पश्तून, ख़ान साहिब की खुदाई ख़िदमतगार मूवमेंट के मेम्बर थे। ब्रिटिश हुकूमत के ज़ुल्मों का सामना खुदाई खिदमतगारों ने पूरी शान्ति से किया था। ख़ान साहिब पाकिस्तान की मांग के सख़्त खिलाफ थे। वो नहीं चाहते थे कि यूनाइटेड इण्डिया का बटवारा करके पाकिस्तान बने। इससे भी हिन्दुओं और सिखों को यह यकीन था कि पाकिस्तान नहीं बनेगा। कम-अज़-कम उनकी जान-ओ-माल को कोई ख़तरा नहीं, ऐसा हज़ारा के हिन्दुओं और सिखों को लगता था।
* जिला हजारा के ऐसे कई पहाड़ी गांव थे, जो ऐबटाबाद, हरीपुर, या मानसेहरा से काफी दूर थे और वहां पर एक-एक, दो-दो, या ऐसे ही बहुत कम परिवार हिन्दुओं और सिखों के रहते थे। जाहिर था कि दूर-दराज के ऐसे गावों और बस्तियों में रह रहे हिन्दु और सिक्खों को बहुत बड़ा खतरा था। यह फैसला हुआ कि उनको वहां उनके गाँवों से निकालकर एबटाबाद ले आया जाए।
* ऐसे ही जब 12 दिसंबर 1946 को जबोड़ी-डाडर के कुछ हिन्दू और सिख परिवारों के लोगों को लारी के ज़रिये, बस के ज़रिये उनके गांव से निकालकर ऐबटाबाद की तरफ ले जाया जा रहा था, तो सुनकियारी से लगभग 5 मील की दूरी पर नदी के पुल पर बस को रोककर हिन्दुओं और सिखों को तेज़धार हथियारों से मारना शुरू कर दिया। उनका सारा माल असबाब लूट लिया गया। कुल 16 हिन्दु और सिख मर्द, औरतें और बच्चे बेरहमी से क़त्ल कर दिए गए और बाकी बहुत बुरी तरह से ज़ख्मी हुए।
* 19 दिसंबर 1946 को ढूढ़ियाल और जलो गाँवों पर जबरदस्त हमला किया गया। दोनों गाँवों में हिन्दु और सिख दुकानदारों को मार दिया गया। गांव के और हिन्दु और सिखों पर भी हमला किया गया। घरों को जला दिया गया और कई हिन्दु और सिख औरतों से जबरदस्ती की गई।
* मानसेरा तहसील के गांवों में हिन्दुओं और सिखों के क़त्ल के बाद ऐबटाबाद और आस-पास के गाँवों के हिन्दुओं और सिखों का एक डेपुटेशन डिप्टी कमिश्नर और SP को मिला और अपनी जान और माल की हिफाज़त की गारंटी मांगी और अगर सरकार ऐसा नहीं कर सकती, तो वह हिन्दुओं और सिखों को अपनी हिफाजत खुद करने के लिए सरकारी हथियार दे।
* हवेलियां कसबे में मुस्लिम लीग और मुस्लिम लीग की नेशनल गार्ड वालों ने एक बहुत बड़ा जुलूस निकाला। यह जुलूस रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर एक बहुत बड़े जलसे के रूप में बदल गया। इस जलसे को मुखातिब करते हुए लीग के कई लोकल रहनुमाओं, मज़हबी जनूनी जागीरदारों, और कट्टरपंथियों ने सूबे की डॉक्टर ख़ान साहिब की मिनिस्टरी की निंदा की। जो रहम दिल लोकल मुसलमान हिन्दुओं और सिखों की मदद कर रहे थे, जलसे में उनकी भी निन्दा की गई और उनके लिए बहुत भद्दे अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल किया। पंजाब में सिक्खों के हाथों मुसलमानों के मारे जाने की झूठी बातें लोगों को सुना सुना कर भड़काया गया, हालांकि दिसंबर 1946 और जनवरी 1947 में पंजाब में मुसलमानों पर हमले नहीं हुए थे। लोगों को भड़काया गया कि पंजाब से सिख आ रहे हैं और सरहदी सूबे पर हमला करेंगे और यहां के मुसलमानों को मारेंगे।
* इस तरह यह हवेलियाँ, झंगडा, राजोइया, गौड़ा, फुलगरां, दमदौड, बांडा, पीरकोट, पिपल, मुजाब, जाबा, मोहाड़ी, धणक-कड़छ, नारा, सतोड़ा, औगल, घगडोतर, मोहरी वडभैंन, दवाल, अखरूटा, नगरी मकोल, भजूर, लोरा, कुटल, घड़ागा, बजाड़ियां जैसे गांवों और मलाछ के इलाके में 7-8 बिखरी हुई बस्तियों में रहने वाले हिन्दुओं और सिखों पर ख़ूनी हमलों की शुरुआत थी। इन गावों में मोहाड़ी हमारा गाँव था।
* “ख़ून से लेंगे पाकिस्तान।” पाकिस्तान मूवमेंट के दौरान आल इण्डिया मुस्लिम लीग और मुस्लिम लीग नेशनल गार्डस का यह नारा एक ख़ास सन्देश देता था। पश्चमी पंजाब, सिन्ध, और नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स के हिन्दू और सिख इस नारे की गम्भीरता को अपना बहुत बड़ा जान-ओ-माल का नुक़्सान करा कर ही समझ पाये थे।
* ज़िला हज़ारा के एक-दो नहीं, बहुत सारे गांवों पर हमले हुये और सिखों और हिन्दुओं को क़त्ल किया गया। इन सब के बारे में जो मुझे पता है, वो मुझे बताना चाहिये। और, मैं वो सब बताऊंगा। आगे की कुछ वीडिओज़ में मैं हिन्दुओं और सिखों पर हुये ज़ुल्मों के बारे में ही बताऊंगा। मुझे अपनी इन वीडिओज़ के हज़ारों views नहीं चाहिये। कोई एक भी इन्सान मेरी इन वीडिओज़ को ध्यान से सुनकर हमारे हिन्दुओं और सिखों के बुज़ुर्गों के उजड़ने के दर्द को समझ ले, तो मेरा ये वीडियोज़ बनाने का मक़सद पूरा हो जायेगा।
* हज़ारा के हज़ारों हिन्दू और सिख बहुत मुश्किल से वहां से निकल कर इण्डिया पहुँचे थे। वहां से निकलने की कोशिश करते हुये सैंकड़ों हिन्दू और सिख बेरहमी से क़त्ल कर दिये गये थे। कितनों को ज़िन्दा ही जला दिया गया था। कितनी ही सिख और हिन्दू लड़कियों को, औरतों को ज़बरदस्ती का शिकार बनाया गया। उनको बेइज़्ज़त किया गया। उनको अग़वा कर लिया गया। 8-8 साल की, 9-9 साल की मासूम बच्चियों तक को बख्शा नहीं गया। कितने ही घरों को लूट लिया गया। कितने ही घरों को जला दिया गया। मंदिरों और गुरद्वारों को भी आग लगा दी गयी।
* मार्च, 1940 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने अपने लाहौर सेशन में अलग मुस्लिम मुल्क की मांग रखी थी, लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि यूनाइटेड इंडिया के सब मुसलमान ही इंडिया से अलग एक मुस्लिम मुल्क बनाने के हक में थे, या मुसलमानों की सभी जमातें ही इंडिया से अलग एक मुस्लिम मुल्क बनाने के हक में थीं।
* मैं पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी की बात इससे पहले की एक वीडियो में कर चुका हूं। यूनियनिस्ट पार्टी में हिन्दू और सिख भी थे, लेकिन इसमें मैजोरिटी मुसलमानों की ही थी। 1937 से पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी की ही मिनिस्ट्री थी। 1937 से 1942 तक सर सिकन्दर हयात खान पंजाब के चीफ मिनिस्टर रहे। उनकी मौत के बाद 1942 में सर ख़िज़्र हयात टिवाणा चीफ मिनिस्टर बने। मार्च 1947 तक वो ही चीफ मिनिस्टर रहे। यूनियनिस्ट मिनिस्ट्री ऑफिशियली पाकिस्तान स्कीम की हिमायत नहीं करती थी।
* मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम पार्टी की बुनियाद 29 दिसम्बर 1929 को रखी गई थी। इस पार्टी का base पंजाब में था। नार्थ वेस्ट frontier प्रोविन्स में भी इसका कुछ असर था। मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी, चौधरी अफ़ज़ल हक़, और सईद अताउल्लाह शाह बुखारी इस पार्टी के रहनुमाओं में थे। इंडिया की आज़ादी और अलग-अलग फ़िरक़ों में अच्छे ताल्लुक़ात कायम करना इस का मक़सद था। मुस्लिम लीग वाले मुहम्मद अली जिन्नाह को क़ायद ए आज़म कहते थे, लेकिन अहरार वाले उन्हें काफ़िर ए आज़म कहते थे। यूनाइटेड इण्डिया की पार्टीशन का मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम ने विरोध किया था। इण्डिया में 1947 में बाद यह पार्टी Majlis-E-Ahrar Islam Hind, मजलिस ए अहरार इस्लाम हिन्द के नाम से लुधियाना में centered हो के चलती रही, हालांकि इण्डियन पंजाब से ज़्यादातर मुस्लिम आबादी पाकिस्तान चले जाने की वजह से अहरार का असर बिल्कुल कम हो गया।
* पाकिस्तान की मांग और two nation theory का ज़ोरदार विरोध करने वाले मुसलमानों में एक बड़ा नाम मौलाना अबुल कलाम आज़ाद साहिब का है। उर्दू, अरबी, और फ़ारसी के आलिम, इस्लामिक स्कॉलर, मौलाना सईद अबुल कलाम महियुद्दीन अहमद आज़ाद की पैदाइश इस्लाम के सबसे मुक़द्दस शहर मक्का में हुई । कहा जाता है कि उनके खानदान का सीधा ताल्लुक़ इमाम हुसैन साहिब से था। मौलाना साहिब 1940 से 1945 तक कांग्रेस के प्रेजिडेंट रहे। भारत के आज़ाद होने के बाद मौलाना साहिब भारत के पहले एजुकेशन मिनिस्टर बने। 11 नवम्बर को उनके जन्मदिन को भारत में नेशनल एजुकेशन डे के तौर पर मनाया जाता है। उनकी मौत के कई साल बाद 1992 में भारत सरकार ने उनको भारत रत्न दिया।
* पाकिस्तान की मांग का ज़ोरदार विरोध करने वाले मुसलमान रहनुमाओं में एक और बड़ा नाम पंजाब के डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू साहिब का है। इण्डियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो कर वो हमेशा हिन्दू-मुस्लिम यूनिटी के लिये कोशिशें करते रहे। ब्रिटिश हुकूमत ने उनको कई बार ग्रिफ्तार किया और वो कुल मिलाकर कोई 14 साल जेल में रहे। आल इण्डिया मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग की उन्होंने ज़बरदस्त मुख़ालफ़त की। 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद उनका घर दंगाबाज़ों ने जला दिया, जिसके बाद वो दिल्ली चले गये। उनकी मौत 1963 में हुई।
* डॉ मग़फ़ूर अहमद अजाज़ी आल इण्डिया मुस्लिम लीग में थे। जब आल इण्डिया मुस्लिम लीग ने 1940 मे लाहौर में अलग मुस्लिम देश बनाने का मता / क़रारदाद पास किया, तो वो इसके खिलाफ़ थे। इसलिये उन्होने ने उसी साल आल इण्डिया जमहूर मुस्लिम लीग के नाम से एक अलग सियासी जमात खड़ी कर ली। आल इण्डिया जमहूर मुस्लिम लीग का पहला सेशन बिहार के मुजफ्फरपुर में हुआ, जिसमे डॉ मग़फ़ूर अहमद अजाज़ी को जनरल सेकरेटरी चुना गया। आल इण्डिया जमहूर मुस्लिम लीग का एक बड़ा हिस्सा डॉ मग़फ़ूर अहमद अजाज़ी की रहनुमाई में इंडियन नेशनल काँग्रेस में शामिल हो गया।
* पाकिस्तान की मांग का विरोध करने वाले मुस्लिम रहनुमाओं में सबसे बड़ा नाम सरहदी गाँधी भारत रत्न ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब का है। सूबा सरहद के ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब इंडियन नेशनल काँग्रेस के एक बड़े रहनुमा थे, जिन्होने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ जद्दोजहद में हिस्सा लिया। खान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब को अहिंसा या non-violence की उनकी policies के लिए सरहद्दी गाँधी भी कहा जाता था, क्यूंकि उन्होने सूबा सरहद में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ non-violent मूवमेंट चलाई थी। प्यार से लोग उन्हें बादशाह ख़ान या बाचा ख़ान भी कहते थे। ख़ान साहिब ने 1929 में खुदाई ख़िदमतगार मूवमेंट शुरू की। खुदाई ख़िदमतगार मूवमेंट में एक लाख से ज़्यादा मुसलमान मेम्बर थे। अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब ने आल इण्डिया मुस्लिम लीग की इण्डिया की पारटिशन करने की मांग की सख़्त मुखालफत की। जब इंडियन नेशनल काँग्रेस ने खुदाई ख़िदमतगार की सलाह के बिना ही पारटिशन प्लान पर अपनी सहमति जताई, तो ख़ान साहिब ने काँग्रेस के रहनुमाओं से कहा था, “आप ने हमें भेड़ियों के आगे फेंक दिया है।”
* इंडियन नेशनल कॉंग्रेस के 100 साल पूरे होने पर 1985 में ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान साहिब भारत आए और इंडियन नेशनल काँग्रेस की celebrations में शामिल हुये। 1987 में वो फिर भारत आये, जब भारत सरकार ने उनको भारत सरकार का सबसे बड़ा civilian award भारत रत्न दिया।
* 20 जनवरी, 1988 को ख़ान साहिब की मौत पेशावर में हुई। उनकी मौत के कुछ घण्टों के अन्दर ही भारत के उस वक़्त के प्राइम मिनिस्टर राजीव गान्धी अपने कुछ मिनिस्टर्स के साथ पेशावर पहुँचे और सभी भारतीयों की तरफ़ से ख़ान साहिब को श्रद्धांजलि दी। भारत सरकार ने ख़ान साहिब की मौत पर पाँच दिन के सोग का ऐलान किया था।
* 1937 में हुये लेजिस्लेटिव assemblies के इलेक्शन्स में इण्डियन नेशनल कांग्रेस ने अलग-अलग प्रोविंसेज़ में 1585 में से 707 सीटें हासिल कीं। आल इण्डिया मुस्लिम लीग को सिर्फ़ 106 सीटें मिलीं।
* कांग्रेस 8 प्रोविंसेज़ में कामयाब रही। बंगाल, पंजाब, और सिन्ध ही ऐसे तीन सूबे थे, जहां कांग्रेस को अपनी मिनिस्ट्री बनाने में कामयाबी नहीं मिली थी। लेकिन, मुस्लिम लीग तो किसी भी प्रोविन्स में अपनी मिनिस्ट्री बनाने में नाकामयाब रही थी।
* 1937 में मुस्लिम लीग की टिकट पर जीतने वाले मुसलमानों से ज़्यादा तादाद उन मुसलमानों की थी, जो दूसरी पार्टीज़ की टिकट पर जीते या जो इंडिपेंडेंट canditates के तौर पर जीते थे।
* नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स में इण्डियन नेशनल कांग्रेस ने 50 में से 19 सीटें जीतीं थी। नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स की लेजिस्लेटिव असेम्बली में मुस्लिम लीग का कोई मेम्बर नहीं थी। वहां कांग्रेस ने ही अपनी मिनिस्ट्री बनाई।
* सिन्ध में 72 फ़ीसद आबादी मुसलमानों की थी। सिन्ध की 60 सीटों में से मुस्लिम लीग एक भी सीट नहीं जीत पाई। सिन्ध यूनाइटेड पार्टी को 22 और कांग्रेस को 8 सीटें मिलीं।
* यूनियनिस्ट पार्टी के सर सिकन्दर हयात खान 1937 से 1942 तक संयुक्त पंजाब के चीफ़ मिनिस्टर रहे।
* कांग्रेस ने पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी की मिनिस्ट्री की सख़्त मुख़ालफ़त करनी शुरू की। अपने भाषणों में पण्डित नेहरू अक्सर सर सिकन्दर हयात खान को ब्रिटिश हुकूमत का दरबारी कहते। मुहम्मद अली जिन्नाह और आल इण्डिया मुस्लिम लीग की रहनुमाई पर भी वो सवाल खड़े करते रहते।
* नेहरु के इस तरह सिकन्दर हयात खान और जिन्नाह के ख़िलाफ़ बोलते रहने से सिकन्दर हयात खान और जिन्नाह ने एक-दूसरे के क़रीब आने का फ़ैसला किया, ताकि नेहरू की चालों का मुक़ाबला किया जा सके। इसका नतीजा था कि मुस्लिम लीग के 1937 में हुये लखनऊ सैशन में सिकन्दर-जिन्नाह पैक्ट हुआ। फिर पंजाब का सियासी सीन बदलना शुरू हुआ।
* बाद में, पंजाब की मुस्लिम लीग ने महसूस किया कि सिकन्दर हयात खान मुस्लिम लीग की पंजाब में तरक़्क़ी को रोक रहे हैं। उन्होंने इसके ख़िलाफ़ जिन्नाह के पास शिकायत की। जिन्नाह बहुत दूर-अंदेश थे। उन्होंने सिकन्दर हयात खान के लिये मुश्किलें खड़ी करने की पण्डित नेहरू की ग़लती नहीं दुहराई। उन्होंने धीरज से काम लिया और मुस्लिम लीग के लोगों से कहा कि सिकन्दर हयात के साथ co-operation ही करते रहो। सिकन्दर हयात खान पंजाब में बहुत पॉपुलर थे। पण्डित नेहरू उनकी पॉपुलैरिटी को कम करके उनकी सरकार गिराना चाहते थे और जिन्नाह सिकन्दर की पॉपुलरटी को बचाये रखते हुये उससे मुस्लिम लीग के लिये फ़ायदा लेना चाहते थे।
* 1942 को गांधी जी ने Quit India Movement, भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू कर दिया। ब्रिटिश हुकूमत ने गांधीजी समेत कांग्रेस के लगभग सभी बड़े leaders को क़ैद कर लिया। ये सभी 1944 तक जेलों में ही बन्द रहे। जिन्नाह और मुस्लिम लीग के लिये मैदान ख़ाली था। अपना base बढ़ाने के लिये उनके पास यह बहुत बड़ा मौक़ा था। और, उन्होंने यह मौक़ा नहीं गवाया। बस फिर देखते ही देखते पाकिस्तान मूवमेंट ने ज़ोर पकड़ने लगी।
* सिकन्दर हयात खान की मौत के बाद 1942 में सर ख़िज़्र हयात टिवाणा पंजाब के चीफ मिनिस्टर बने। अब तक पंजाब असेम्बली के कई मुसलमान मेम्बरज़ मुस्लिम लीग के साथ हो चुके थे। मुस्लिम लीग ने टिवाणा पर दबाव बनाये रखा।
* यूनियनिस्ट पार्टी ऑफिशियली पाकिस्तान की मांग के ख़िलाफ़ थी। असेम्बली के सिख और हिन्दू यूनियनिस्ट मेम्बरज़ पाकिस्तान के ख़िलाफ़ खुल कर बोल रहे थे। ऐसे में मुस्लिम लीग चाहती थी कि पंजाब सरकार ऑफिशियली पाकिस्तान की स्थापना की हिमायत करे। टिवाणा ने ऐसा नहीँ किया, तो जिन्नाह ने यूनियनिस्ट मुस्लिम लीडरान को ग़द्दार कहना शुरू कर दिया। इससे यूनियनिस्ट पार्टी और मुस्लिम लीग के सम्बन्ध बिगड़ गये।
* 1944 में सी राजगोपालाचार्य के फ़ॉर्मूले पर गांधी जी ने जिन्नाह से बॉम्बे में बातचीत शुरू कर दी। राजगोपालाचार्य का फ़ॉर्मूला बुनियादी तौर पर पाकिस्तान बनाये जाने की मांग को क़बूल करता था, लेकिन इसमें इस मुद्दे पर राय शुमारी कराये जाने की बात थी। रायशुमारी जिन्नाह को मन्ज़ूर नहीं थी, और इसी वजह से गांधी-जिन्नाह बातचीत ख़त्म हो गयी।
* पाकिस्तान बनने से सबसे ज़्यादा मुश्किलें सिखों को ही आनी थीं, क्योंकि उनकी आबादी का एक हिस्सा उस इलाके में रहता था, जहां पाकिस्तान बनने वाला था। सिखों के कितने ही इतिहासिक पवित्र गुरुद्वारे भी वहां थे। राजगोपालाचार्य फ़ॉर्मूले को एक्सेप्ट करके गांधी जी के जिन्नाह से बातचीत करने को अकाली दल के रहनुमा मास्टर तारा सिंघ ने कांग्रेस द्वारा सिखों से धोखा क़रार दिया।
* कोई कितनी भी सफाई देता फिरे, लेकिन 1944 में गांधी जी और जिन्नाह साहिब की मीटिंग के बाद यह साफ़ हो चुका था कि कांग्रेस पार्टी भी अब अलग पाकिस्तान की मांग के हक़ में थी।
* 1946 में हुये इलेक्शन्स में अलग-अलग सूबों में इण्डियन नेशनल कांग्रेस ने 1585 सीटों में से कुल 923 सीटें जीतीं। आल इण्डिया मुस्लिम लीग को 425 सीटें मिलीं, जबकि 1937 में उसे 106 सीटें ही मिलीं थीं। 9 साल में मुस्लिम लीग ने ऐसी सियासत खेली कि उसकी सीटों की गिनती चार गुना बढ़ गयी।
* सिन्ध में मुस्लिम लीग ने 27 सीटें हासिल कीं और 4 इंडिपेंडेंट मुस्लिम मेम्बरज़ की सपोर्ट से अपनी मिनिस्ट्री बनाई।
* 1946 के पंजाब में हुये elections में मुस्लिम लीग ने 75 seats पर जीत हासिल की और पंजाब लेजिस्लेटिव असेम्बली में सबसे बड़ी पार्टी बनी। कांग्रेस दूसरे नम्बर पर थी और अकाली दल तीसरे नम्बर पर था। यूनियनिस्ट पार्टी चौथे नम्बर पर रही।
* 1937 में जब यूनियनिस्ट पार्टी पंजाब में मैजोरिटी में थी, तो कांग्रेस यूनियनिस्ट पार्टी की सरकार को गिराने की कोशिशें करती रही। अब, 1946 में जब यूनियनिस्ट पार्टी चौथे नम्बर पर थी, तो कांग्रेस इनकी सरकार बनाने की कोशिश में जुट गई। उधर मुस्लिम लीग असेम्बली में सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से अपनी मिनिस्ट्री बनाना चाहती थी। ऐसा उसका हक़ भी था।
* 2 अप्रैल, 1946 को जिन्नाह साहिब की एक मीटिंग सिख रहनुमाओं से रखी गई। सिखों की तरफ़ से इस में मास्टर तारा सिंघ, पटियाला के महाराजा याद्विंदर सिंघ, महाराजा याद्विंदर सिंघ के प्रधानमंत्री हरदित्त सिंघ मलिक, और ज्ञानी करतार सिंघ शामिल हुये थे। जिन्नाह साहिब ने सिखों को पाकिस्तान में शामिल होने के लिये राज़ी करने की कोशिश की। लेकिन, यह बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची।
* कांग्रेस, यूनियनिस्ट पार्टी और सिखों के बीच बातचीत होने के बाद ख़िज़्र हयात टिवाणा की रहनुमाई में यूनियनिस्ट पार्टी, कांग्रेस और अकाली दल की मिनिस्ट्री बना दी गयी। इससे पंजाब में मुस्लिम लीग के हिमायती मुसलमानों में ज़बरदस्त ग़ुस्सा फैल गया। मुस्लिम लीग ने पंजाब की मिनिस्ट्री के ख़िलाफ़ मूवमेंट शुरू की। 1946 के आख़िर तक पंजाब में जगह-जगह पर दंगे होने शुरू हो गये। 1947 के शुरू तक हालात बहुत बिगड़ गये। आख़िर 2 मार्च, 1947 को ख़िज़्र हयात टिवाणा ने इस्तीफ़ा दे दिया।
* अगले दिन, 3 मार्च को लाहौर में असेम्बली हाल के बाहर अकाली रहनुमा मास्टर तारा सिंघ ने 400-500 सिखों के साथ हज़ारों पाकिस्तान के हिमायती मुसलमानों के सामने पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाये। उस दिन से लाहौर में मुसलमान दंगाबाज़ों और सिख दंगाबाज़ों के बीच ऐसे ख़ूनी दंगे शुरू हुये, जो पहले कभी नहीं हुये थे। यह दंगे पंजाब के और हिस्सों में भी फैल गये। रुक-रुक कर यह दंगे होते ही रहे। पाकिस्तान बनने तक और फिर उसके कुछ बाद तक दंगे और भयानक होते गये। इण्डिया में और जगहों पर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो ही रहे थे। पंजाब में भी हिन्दू इन दंगों की गरिफ़्त में आ गये। मरने वालों की तादाद हज़ारों में नहीं, बल्कि लाखों में थी।
* हक़ीक़त यही है कि पंजाब के बिना पाकिस्तान नहीं बन सकता था। 1937 से 1947 तक का दस साल का वक़्त बड़ा ख़ास और नाज़ुक था। इस वक़्त में ही जिन्नाह की सियासत और डिप्लोमेसी की वजह से आल इण्डिया मुस्लिम लीग उस मुक़ाम तक पहुंची, जहां पाकिस्तान के क़याम से, पाकिस्तान की स्थापना से इस subcontinent का नक़्शा ही बदल गया। यह वो दौर था, जिसमें पण्डित नेहरू और गांधी जी ने वो सियासी ग़लतियाँ कीं, जिनके नतीजे में भारत को यूनाइटेड रखना, अखण्ड रखना नामुमकिन हो गया।
मेहरबानी करके पूरी विडियो देखिये। इस विडियो में मुख्य नुक्ते इस प्रकार हैं: –
* 1940 तक मुहम्मद अली जिन्नाह यूनाइटेड इण्डिया के मुसलमानों के सबसे बड़े लीडर के तौर पर उभर चुके थे। उन्हें क़ायद-ए-आज़म (great leader) के तौर पर जाना जाता था।
* मार्च 23, 1940 को आल इण्डिया मुस्लिम लीग के लाहौर सैशन में मुस्लिम मेजोरिटी वाला एक अलग देश बनाने का resolution, मता पेश किया गया, जिसे अगले दिन पास कर दिया गया।
* मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान की मांग का हिमायती बन गया। 1946 में इण्डिया की Constituent Assembly के लिये हुये elections में मुसलमानों के लिये reserve 476 सीटों में से आल इण्डिया मुस्लिम लीग ने 425 सीटों पर जीत हासिल की।
* कैबिनेट मिशन के प्लैन पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग की पूरी सहमति नहीं बन सकी। अलग पाकिस्तान बनाने की मांग पर ज़ोर देने के लिये जिन्नाह ने 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान कर दिया, जिसमें लोगों से अपील की गयी थी कि वो अपने कारोबार एक दिन के लिये बंद रखें।
* कलकत्ता में फ़साद 1945 से ही हो रहे थे। पहले ये फ़साद यूरोपियन लोगों के खिलाफ़ थे। बाद में ये हिन्दू-मुस्लिम फ़साद की शक्ल अख़्तियार कर गये। 46 नवम्बर 1945 में 46 यूरोपियन और ईसाई इन फ़सादों में मारे गये थे। फरवरी 1946 में 35 यूरोपियन और ईसाई फ़सादों का शिकार हुये।
* 16 अगस्त 1946 को डाइरैक्ट एक्शन डे पर कलकत्ता में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच बहुत बड़े स्तर पर दंगे हुये। बंगाल प्रोविन्स में मुसलमानों की तादाद हिन्दुओं से ज़्यादा थी, जबकि कलकत्ता शहर में हिन्दुओं की तादाद मुसलमानों से काफ़ी ज़्यादा थी।
* कलकत्ता में मुस्लिम लीग ने दोपहर 2 बजे एक रैली रखी। सुबह ही दुकानों को जबरन बंद कराया जाने लगा। पत्थरबाज़ी और छुरेबाजी की वारदातें होनी शुरू हुई। जब रैली ख़त्म हुई, तो रैली से लौट रहे लोगों ने हिन्दुओं पर हमले करने शुरू कर दिये। इससे शहर के अलग-अलग हिस्सों में दंगे भड़क उठे। अगले दिन 17 अगस्त को ये दंगे और भयंकर रूप ले चुके थे। एक मिल पर हमला कर के वहाँ ठहरे 300 मज़दूरों को मार डाला गया।
* ये भयंकर दंगे एक हफ़्ते तक चले। 4000 से ज़्यादा लोग इस में मारे गये। कई लोगों ने मरने वालों की तादाद 7000 से लेकर 10,000 तक भी बताई है। एक लाख से भी ज़्यादा लोग अपने घर छोड़ कर भाग गये।
* 10 अक्तूबर, 1946 को नोयाखली में दंगे शुरू हुये। यह दंगे असल में दंगे न हो कर हिन्दुओं का क़त्ल-ए-आम था। इस में कितने हिन्दू मारे गये, इस का कोई सही-सही अंदाज़ा लगाना मुमकिन नहीं है। मरने वाले हिन्दुओं की तादाद हज़ारों में थी।
* नोयाखली में हिन्दुओं के क़त्ल-ए-आम के बाद बिहार में मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा होनी शुरू हुई। छपरा, पटना, मुंगेर, और भागलपुर में ख़ास कर के मुसलमानों को निशाना बनाया गया और सैंकड़ों की तादाद में मुसलमान मार डाले गये।
* यूनाइटेड प्रोविंसेस में, गढ़मुक्तेश्वर में लगभग 2000 मुसलमान मार दिये गये।
* 1946 के आख़िर तक दंगे पंजाब और नॉर्थ-वेस्ट फ़्रंटियर प्रोविन्स में भी होने शुरू गये। पाकिस्तान की मांग के नतीजे में सबसे ज़्यादा मारकाट पंजाब में हुई। पश्चिमी पंजाब में मुस्लिम मेजोरिटी थी। वहाँ हिन्दुओं और सिखों का क़त्ल-ए-आम बहुत बड़े पैमाने पर हुआ। पूर्वी पंजाब में मुस्लिम आबादी कम थी। यहाँ मुसलमानों का क़त्ल-ए-आम बहुत बड़े पैमाने पर हुआ।
* वो हिन्दू और सिख, जो अब तक भी पाकिस्तान की मांग के ख़िलाफ़ थे, अब सोचने लगे कि ऐसे ख़ून-ख़राबे से अच्छा है कि अलग पाकिस्तान ही बन जाये।
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* 1921-1922 में हिन्दू महासभा के वी डी सावरकर ने एक लम्बा आर्टिकल The Essentials of Hindutva लिखा। इसमें सावरकर ने यह ख़्याल दिया कि सभी हिन्दू अपने-आप में एक नेशन हैं। उन्होंने ने जैनों, बौद्धों, और सिखों को भी हिन्दू नेशन माना। उन्होंने लिखा कि भारत सभी हिन्दुओं की पितृभूमि भी है और पुण्यभूमि भी। उन्होंने ने यह भी लिखा कि भारत मुसलमानों की पुण्यभूमि नहीं है और मुसलमानों की मज़हबी अक़ीदत भारत से बाहर मक्का की तरफ़ है। उन्होंने दलील पेश की कि भारत मुसलमानों की पुण्यभूमि न होने की वजह से मुस्लमान लोग हिन्दू नेशन नहीं हैं।
* 1924 में हिन्दू महासभा के ही एक रहनुमा लाला लाजपत राय के कुछ लेख The Tribune अख़बार में छपे। 14 दिसम्बर 1924 को छपे एक लेख में उन्होंने ने नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स, पश्चिमी पँजाब, सिन्ध, और पूर्वी बंगाल को मुस्लिम स्टेट्स बनाने की स्कीम बताई। उन्होंने ने यह भी लिखा कि अगर भारत में कहीं और भी मुस्लमान इतनी तादाद में हों कि वो अलग प्रोविन्स बना सकें, तो वहां भी ऐसी मुस्लिम स्टेट बना दी जानी चाहिये। लाला लाजपत राय ने साफ़ तौर पर लिखा कि यह यूनाइटेड इण्डिया नहीं होगा। उन्होंने लिखा, “इसका मतलब है कि इण्डिया का मुस्लिम इण्डिया और नॉन-मुस्लिम इण्डिया में बंटवारा”।
* कई साल बाद जब आल इण्डिया मुस्लिम लीग ने अलग मुस्लिम देश की माँग रखी, तब 1940 में लाहौर में हुए आल इण्डिया मुस्लिम लीग के सैशन को ख़िताब करते हये मुहम्मद अली जिन्नाह ने अपनी इस बात को सही साबित करने के लिये कि हिन्दू-मुस्लिम यूनिटी, हिन्दू-मुस्लिम एकता नहीं हो सकती, सी आर दास को लिखे लाला लाजपत राय के ख़त के कुछ हिस्से पढ़ कर सुनाये।
* पंजाब में अकाली 1920 से गुरद्वारा आन्दोलन चला रहे थे। इण्डियन नेशनल कांग्रेस ने गुरद्वारा मूवमेंट की हिमायत की। कांग्रेस की नॉन-कोऑपरेशन मूवमेंट को अकालियों ने सहयोग दिया। फ़रवरी 1921 में जब ननकाना साहिब गुरद्वारे में 130 सिखों का क़त्ल -ए-आम हुआ, तो गाँधी जी भी वहां सिखों के ग़म में शरीक होने पहुंचे। एक जत्थे में पण्डित जवाहरलाल नेहरू भी सिखों के साथ ग्रिफ्तार हुये।
* 1925 तक ब्रिटिश सरकार सिखों की मांगें मानने पर मजबूर हो गयी थी और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमिटी बना कर इतिहासिक गुरद्वारों का प्रबन्ध सीधा सिखों को दे दिया गया। गुरद्वारों के सुधार के लिये चले इस संघर्ष में लगभग 400 सिख शहीद हुये और हज़ारों को जेल जाना पड़ा।
* मोहम्मद अली जिन्ना 1930 से 1934 तक वो इण्डिया से बाहर इंग्लैंड में रहे। बाद में उनके ख़ुद के ख़्यालात भी बदल गये और वो अलग मुस्लिम मेजोरिटी वाले मुल्क की मांग के हिमायती बन गये। आल इण्डिया मुस्लिम लीग के 1940 के लाहौर सैशन में जिन्नाह की तक़रीर पढ़ कर उनके बदले हुये ख़्यालात को जाना जा सकता है।
* 1933 में चौधरी रहमत अली का पैम्फलेट now or never छपा। इसमें यूनाइटेड इण्डिया को तोड़कर एक अलग मुस्लिम मुल्क़ बनाने की मांग थी।
* अब तक कांग्रेस के मेम्बरज़ को मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, और आरएसएस के मेम्बर्स बनने की भी छूट थी। जून 1934 में काँग्रेस ने एक रेसोल्यूशन पास कर के अपने मेम्बर्स पर यह पाबन्दी लगा दी कि वो आरएसएस, हिन्दू महासभा, और मुस्लिम लीग के मेम्बर नहीं बन सकते।
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* (1886 में) जब सर सय्यद अहमद ख़ान ने मुहम्मडन एजुकेशन कॉन्फ्रेंस शुरू की, तब इसका मक़सद सिर्फ़ एजुकेशन ही था।
* 27 दिसम्बर से 30 दिसम्बर, 1906 तक ढाका में मुहम्मडन एजुकेशन कॉन्फ्रेंस हुई, जिसमें आल इण्डिया मुस्लिम लीग के नाम से एक सियासी जमात खड़ी करने का मता पास किया गया।
* आल इण्डिया मुस्लिम लीग का सियासी निशाना मुसलमानों के सिविल राइट्स के लिये काम करना ही था। मुस्लिम लीग का एक मक़सद यह भी था कि मुसलमानों और दूसरे ग़ैर-मुसलमान भारतियों के दरमियान आपसी अंडरस्टैंडिंग बढ़ाई जाये।
* यह वो दौर था, जब मुस्लिम और हिंदू रहनुमाओं में आपस में एकता थी।
* ऐसा लगभग 1920-1921 तक चला। उसके बाद देश की सियासत में फ़िरक़ापरस्ती बढ़ने लगी।
* खिलाफ़त आंदोलन में 1921 में केरला के मालाबार के इलाक़े में Moplah Rebellion की घटना हुई। ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ चल रहा आंदोलन देखते ही देखते हिन्दुओं के ख़िलाफ़ हो गया। हिन्दुओं के घरों पर हमले हुये। उनके घर लूट लिये गये। कई हज़ार लोग मारे गये। कई हिंदुओं को मुसलमान बना लिया गया। हज़ारों हिन्दू अपने घर छोड़ कर भाग गये।
* अब इण्डिया में कई जगहों पर ख़ूनी दंगे भड़क उठे। सतम्बर 1922 में पंजाब के मुलतान में, अप्रैल 1923 में अमृतसर में, अगस्त 1923 में आगरा और सहारनपुर में, 1923 और फिर 1924 में नागपुर में हिन्दू और मुसलमान भीड़ों के दरम्यान भयंकर दंगे हुये।
* टर्की में 3 मार्च, 1924 को खिलाफ़त को भी ख़त्म कर दिया गया। अब इण्डिया में खिलाफ़त आंदोलन कर रहे मुसलमानों ने काँग्रेस की तरफ़ से चलाये जा रहे असहयोग आन्दोलन को छोड़ना शुरू कर दिया।
* एक हिन्दू की तरफ़ से लिखी गई किसी कविता को लेकर कोहाट में हिन्दुओं और सिखों का क़त्ल-ए-आम हो गया। यह 9 और 10 सतम्बर 1924 की बात है। 155 हिन्दुओं और सिखों को जान से मार डाला गया। कितने ही ज़ख्मी हुये। जो ज़िंदा बच गये, वो रावलपिंडी की तरफ़ भाग गये।
* इसी बैक्ग्राउण्ड में डॉ हेड्गेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बुनियाद 1925 में रखी। इससे पहले ही हिन्दू महासभा की बुनियाद रखी जा चुकी थी।
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* टू-नेशन थ्योरी की आज के दौर में सार्थकता या relevance पर यह दलील दी जाती है कि पाकिस्तान के क़याम के बाद मुस्लिम नेशन की बात ही नहीं रही, क्योंकि पाकिस्तान बनने के बाद पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमान पाकिस्तानी नेशन के तौर पर उभरे हैं। लेकिन, इस दलील ने तो कई और सवाल खड़े कर दिये हैं।
* पाकिस्तान की स्थापना से पहले अखण्ड भारत के सभी मुसलमान एक ही मुल्क में रहने वाले लोग थे। पाकिस्तान की स्थापना ने तो इन मुसलमानों को पाकिस्तानी नेशन और भारतीय नेशन में बाँट कर रख दिया, और पाकिस्तानी नेशन बाद में फिर पाकिस्तानी नेशन और बांग्लादेशी नेशन में बंट गया। टू-नेशन थ्योरी ने मुसलमानों में इत्तिहाद तो क्या लाना था, उल्टा मुसलमानों को ही अलग-अलग नेशन्स में बाँट कर रख दिया।
* हमें भी टू-नेशन थ्योरी का जायज़ा लेने की ज़रूरत महसूस न होती, अगर पाकिस्तान में ही सभी मुसलमान इकट्ठे रह लेते। बँगाली मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में दूसरे मुसलमानों के साथ इकठ्ठा नहीं रह सका और ऐसे, 1971 में बांग्लादेश के नाम से एक और नेशन वजूद में आया।
* यह ज़रूरी नहीं कि अलग-अलग मज़हबों के लोग इकट्ठे नहीं रह सकते। यह भी ज़रूरी नहीं कि एक ही मज़हब को मानने वाले सभी लोग एक ही मुल्क में इकट्ठे रह सकें। पाकिस्तान में कितने ही सिन्धी मुसलमान, कितने ही बलोच मुसलमान भी अपने लिये अलग मुल्क का ख़ाब बुने बैठे हैं। यह टू-नेशन थ्योरी का हासिल है।
* मुस्लिम लीग का यह ख़्याल बहुत खोखला था कि मुसलमान अलग नेशन होने की वजह से हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते। असल बात तो सिर्फ़ ये थी कि उनको एक ऐसा मुल्क चाहिये था, जहाँ मुसलमान मेजोरिटी में हों, अक्सरियत हों। उनको लगता था कि मुस्लिम मेजोरिटी वाले मुल्क में उन्ही की सरकार बनेगी।
* पश्चिमी देशों के लोग आज मुसलमानों की इमीग्रेशन से, हिजरत से ख़ौफ़ज़दा हैं। जैसे भारत को तोड़ कर मुस्लिम लीग ने अलग मुस्लिम मुल्क़ बना डाला, क्या ऐसा ही पश्चिमी देशों में नहीं होगा? यही डर पश्चिमी देशों के कई लोगों को सता रहा है।
* अगर मुस्लिम लीग के मुसलमान भारत में इकट्ठे नहीं रह सकते थे, तो भारत से अलग होकर भी पाकिस्तान के अन्दर ही अमन क्यों नहीं हो पाया, शान्ति क्यों नहीं हो पाई? अलग-अलग मुल्क़ हो कर भी भारत और पाकिस्तान में अब तक दोस्ताना ताल्लुक़ क्यों नहीं बन पाये?
* हक़ीक़त यही है कि सियासी मुफ़ाद के लिये कुछ लोगों ने इस्लाम का नाम इस्तेमाल किया। यूनाइटेड इण्डिया में उनके राजनैतिक हित, सियासी मुफ़ाद पूरे नहीं हो पा रहे थे, जिस वजह से टू नेशन थेओरी को ईजाद किया गया। इसने न सिर्फ़ मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग कर दिया, बल्कि मुसलमानों को भी दो मुल्कों में बाँट कर रख दिया, जो बाद में फिर तीन मुल्कों में बंट गये।
* अपने अन्दर के इन्सान को अगर हम ज़िन्दा रखें, तो हम सब इकट्ठे रह सकते हैं। नहीं तो इन्सानियत को बांटने की कोशिशों का कहीं भी अन्त नहीं है। फिर मुसलमान हिन्दुओं के साथ नहीं रह पायेंगे। शिया सुन्नियों के साथ नहीं रह पायेंगे। कथित upper castes हिन्दू दलितों के साथ नहीं रह पायेंगे। सिन्धी पंजाबियों के साथ नहीं रह पायेंगे। कोई भी एक ग्रुप किसी दूसरे ग्रुप के साथ नहीं रह पायेगा।
* मेरी ओर से सभी लोगों, सभी क़ौमों को शुभ कामनाएँ, best wishes. सब के लिये नेक तमन्नाएँ। अपनी बात मैं गुरु गोबिन्द सिंघ साहिब के कहे हुये इन अल्फ़ाज़ के साथ ख़त्म करता हूँ:-
कोऊ भइओ मुंडीआ संनिआसी
कोऊ जोगी भइओ
कोई ब्रहमचारी कोऊ जतीअनु मानबो ॥
हिंदू तुरक कोऊ राफसी इमाम शाफी
मानस की जात सबै एकै पहचानबो ॥
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* 11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान की कन्स्टीचुअंट असेम्बली को मुख़ातिब करते हुए मुहम्मद अली जिन्नाह साहब ने कहा, “आप आज़ाद हो: आप आज़ाद हो अपने मंदिरों में जाने के लिये, आप आज़ाद हो अपनी मस्जिदों में जाने के लिये और पूजा की किसी भी और जगह पर, इस पाकिस्तान स्टेट में। आप किसी भी मजहब या कास्ट या creed से ताल्लुक रखने वाले हो सकते हो, इसका स्टेट के काम-काज से कोई वास्ता नहीं है।”
* हिन्दू और मुसलमान अखण्ड भारत में इकट्ठे रह सकते थे। अरे, सदियों से वो इकट्ठे रहते ही तो आये थे। अगर पहले वो इकट्ठे रह रहे थे, तो अब इकट्ठे रहने में उनको क्या दिक्कत थी?
* जो मुस्लिम लीग हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकती थी, वो सिखों के साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं महसूस करती थी। यही वजह है कि जिन्नाह साहिब ने सिखों को पाकिस्तान में शामिल होने के लिये कहा था। अगर जिन्नाह साहिब की मुस्लिम लीग हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकती थी, तो सिखों के साथ कैसे रह सकती थी?
* असल बात कुछ और थी। उनको एक ऐसा मुल्क चाहिये था, जहाँ मुसलमान मेजोरिटी में हों, अक्सरियत हों।
* कितने ही मुसलमान भारत में ही रहे और पाकिस्तान नहीं गये। इसका सीधा-सा मतलब यही है कि उन्होंने टू-नेशन थ्योरी को रद्द कर दिया था। वो मानते थे, वो जानते थे कि वह ग़ैर-मुसलमानों के साथ रह सकते हैं। यह वो लोग थे, जिन्होंने जिन्नाह साहिब को या अलगाववादी मुस्लिम लीग को, सेप्रटिस्ट मुस्लिम लीग को रद्द कर दिया था।
* ज़ाकिर हुसैन साहिब, फखरुद्दीन अली अहमद साहिब, और डा. एपीजे अब्दुल कलाम साहिब मुसलमान थे। ये तीनों भारत के राष्ट्रपति बने। इसके अलावा एक और मुसलमान मुहम्मद हिदायतुल्ला साहब भारत के एक्टिंग प्रेजिडेंट रहे। इसके मुक़ाबले में, पाकिस्तान में कोई भी ग़ैर मुस्लमान राष्ट्रपति नहीं बन सकता, सदर नहीं बन सकता।
टू नेशन थ्योरी पर मेरी विडियो का यह दूसरा हिस्सा है।
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* आल इण्डिया मुस्लिम लीग ने नेशन की अपनी ही परिभाषा के मुताबिक़ हिन्दुओं और मुसलमानों को अलग-अलग नेशन माना। बात सिर्फ़ इतनी ही रहती कि हिन्दू एक अलग नेशन हैं और मुसलमान एक अलग नेशन, तो भी कुछ ख़ास न होता, बस एक ज़ेहनी रस्साकशी चलती रहती। लेकिन, बात तो यह बना दी गई कि क्योंकि मुसलमान एक अलग नेशन हैं और हिन्दू एक अलग नेशन हैं, इसलिए ये दोनों इकट्ठे नहीं रह सकते।
* उनकी दलील थी कि हिंदुओं और मुसलमानों के मज़हब, तवारीख़/हिस्टरी, रस्म-ओ-रिवाज़ अलग-अलग हैं, इसलिये उनके मुल्क भी अलग-अलग होने चाहियेँ।
* सभी मुसलमान ही पाकिस्तान की मांग के हक़ में नहीं थे। सभी मुसलमान ही टू-नेशन थ्योरी के क़ायल नहीं थे। बल्कि पाकिस्तान की मांग के मुद्दे पर मुस्लिम लीग से कई मुसलमान अलग हो गए थे और आल इण्डिया मुस्लिम लीग दोफाड़ हो गई थी।
* अगर यह दलील मानी जाये कि मुसलमान हिन्दुओं से अलग नेशन हैं, इसलिये इकट्ठे नहीं रह सकते, तो फिर मुसलमान पश्चमी देशों में ईसाईओं के साथ इकट्ठे कैसे रह लेते हैं?
* आज भारत में रहने वाले मुसलमानों की तादाद पाकिस्तान में रहने वालों मुसलमानों से कुछ ज़्यादा ही है, कम नहीं। अगर मुसलमान हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते होते, तो पाकिस्तान जितने ही मुसलमान भारत में कैसे रह रहे हैं?
* अगर मुसलमान होना ही अपने-आप में एक क़ौमियत है, nationality है, तो एक ही क़ौम के, एक ही नेशन के इतने सारे मुल्क क्यूँ हैं? सभी इस्लामिक मुल्क एक ही मुल्क में तब्दील क्यूँ नहीं हो गये?
* अगर मुसलमान होना ही अपने-आप में एक क़ौमियत है, तो मुस्लिम majority वाले पाकिस्तान मे पख्तून, बलोच, सिन्धी वग़ैरह नस्ली मुद्दे क्यूँ उठे?
* अगर मुसलमान होना ही अपने-आप में एक क़ौमियत है, तो इस्लामिक मुल्कों में शिया और सुन्नी के झगड़े क्यों हैं? क्या अब शिया एक अलग नेशन हैं और सुन्नी एक अलग नेशन हैं? क्या ईरानी लोग इसलिये अलग नेशन हैं, क्यूंकि उनमें majority शिया हैं, या इस लिये अलग नेशन हैं, क्यूंकि उनका अपना एक अलग आज़ाद देश हैं?
* अगर मुसलमान होना ही अपने-आप में एक क़ौमियत है, nationality है, तो फिर पाकिस्तान से अलग होकर 1971 में बांग्लादेश क्यों बना? क्या बांग्लादेशी मुसलमान अब पाकिस्तानी मुसलमानों से अलग नेशन हो गए थे ?
* हक़ीक़त यह है कि अगर सभी के साथ एक-सा इंसाफ़ हो, सभी को बराबरी का दर्जा मिले, तो सभी क़ौमें, कभी नेशन्स इकट्ठे रह सकते हैं। अगर एक ही क़ौम में, एक ही नेशन में कुछ लोगों से बे-इंसाफ़ी हो, तो बदअमनी फैलेगी, हिंसा होगी, violence होगी। हमारी जद्दोजहद बे-इंसाफ़ी के खिलाफ होनी चाहिये, न कि लोगों के मजहबों, नस्लों, ज़ातों, ज़बानों, और नेशन्स के नाम पर बांटा जाना चाहिये।