इतिहास की समीक्षा निष्पक्ष हो । पाकिस्तान की स्थापना (Hindi/Urdu)
تواریخ کا جایزہ منصف مزاج ہو
قیام پاکستان
(अमृत पाल सिंघ ‘अमृत’)
Those who cannot remember the past are condemned to repeat it. – George Santayana
#शरणार्थी_मुद्दे । #पाकिस्तान_की_स्थापना ।
मेहरबानी करके पूरी विडियो को सुनिये। इस में मुख्य नुक़ते इस प्रकार हैं: –
* इन्सानों के बीते वक़्त का अध्ययन ही इतिहास है। यह वे घटनायें, वे वाक़ियात हैं, जिनका ज़िक्र लिखित दस्तावेज़ों में किया गया है। यहाँ भूतकाल का मतलब उन घटनाओं से है, जो काफ़ी पहले हो चुकी हों। उन घटनाओं में लिए गए फ़ैसले पूरे हो चुके हों। उन फ़ैसलों के असर होने ख़त्म हो चुके हों, और उन घटनाओं में शामिल लोग मर चुके हों।
* ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद होते वक़्त इंडियन यूनियन और पाकिस्तान की स्थापना के लिये जिन्होने फ़ैसले किये, वे तो बेशक अब ज़िन्दा नहीं रहे, लेकिन जिन पर उन फ़ैसलों के असर हुये, उनमें से कुछ थोड़े-से लोग अभी भी ज़िन्दा हैं। जो मर भी चुके, उन लोगों के वारिस भी मौजूद हैं, जिन पर उन फ़ैसलों का असर अभी तक हो रहा है, और यक़ीनन ही उन फ़ैसलों का असर अभी काफ़ी वक़्त और होता रहेगा।
* मेरा मक़सद इतिहास बताना तो नहीं है। मेरा मक़सद यह दिखाना है कि वर्तमान में क्या हो रहा है। यह अलग बात है कि मैं वर्तमान को दिखाते वक़्त जिन घटनाओं की तरफ़ इशारा कर रहा हूँ, उनको बहुत लोग इतिहास मान चुके हैं।
* इतिहास को याद रखना निहायत ज़रूरी है, क्योंकि एक वक़्त ऐसा भी आता है, जब इतिहास वह नहीं रहता, जो सचमुच हुआ था, बल्कि वह सिर्फ़ वही कुछ रह जाता है, जो लोगों को याद रह जाये। वक़्त के साथ इतिहास ख़ुद को भी शिकस्त दे देता है। मैं चाहता हूँ कि आप को वह सब कुछ ही याद रहे, जो हुआ और जो हो रहा है।
* कहते हैं कि इतिहास फ़तह हासिल करने वाला ही लिखता है। मसला उस वक़्त पैदा होता है, जब एक दूसरे के मुख़ालिफ़ धड़े ख़ुद को फ़तहयाब या मज़लूम ऐलान करते हैं। ऐसी सूरत में इतिहास के दो बिल्कुल मुख़ालिफ़ संस्करण सामने आते हैं। एक ग्रुप के लिए दूसरे ग्रुप का इतिहास सिर्फ़ प्रोपोगंडा है और अपना लिखा गया ज़िक्र ही इतिहास है।
* भारत और पाकिस्तान की आज़ादी का इतिहास अपने-अपने नज़रिये से लिखा गया है। एक ग्रुप उनका है, जो पाकिस्तान की स्थापना के लिए जद्दोजहद करते रहे और उस जद्दोजहद में कामयाब भी हुए। उन्होंने इतिहास की अपने तरीक़े से व्याख्या की है। एक ग्रुप उनका है, जो भारत की राज-सत्ता पर काबिज़ हुए और उन्होंने उस दौर के इतिहास की व्याख्या अपने नज़रिये से की है।
* दिल में नफ़रत भर कर इतिहास का जायज़ा नहीं लिया जाना चाहिये। अगर दिल में नफ़रत भर कर इतिहास की समीक्षा की जाये, तो समीक्षा एकतरफ़ा ही होगी। टू-नेशन थ्योरी (Two Nation Theory) या दो-क़ौमी उसूल का जायज़ा भी लेना हो, तो यह यक़ीनी बनाया जाना चाहिये कि समीक्षा करते वक़्त दिल में किसी प्रकार की नफ़रत न हो। इतिहास में हो चुके किसी शख़्स के काम का जायज़ा लेते वक़्त भी यह ज़रूरी है कि दिल में नफ़रत न हो।
* समीक्षा हमेशा तथ्यों को सामने रखकर होनी चाहिये। सबसे पहले तथ्य बताये जाने चाहिये। उसके बाद उन तथ्यों की समीक्षा की जानी चाहिये।
* मैं अपने ख़्यालात सामने मौजूद तथ्यों पर आधारित करता हूँ। आप इन ख़्यालात से सहमत हों या न सहमत हों, यह अलग बात है, लेकिन मैं इतना ज़रूर कहूँगा कि मेरे दिल में किसी के लिये भी नफ़रत नहीं है। उन लिये भी मेरे दिल में नफ़रत नहीं है, जिनके ख़्यालात की वजह से, जिनकी नीतियों की वजह से मेरे बुज़ुर्गों को दरबदर होना पड़ा। जिनकी नीतियों की वजह से मेरे बुज़ुर्गों को अपनी ख़ानदानी ज़मीन और गांव से उजड़ना पड़ा। वैसे भी, जो अब मर चुके हैं, उनसे नफ़रत कैसी?